वांछित मन्त्र चुनें

अश्वो॒ न क्रन्द॒ञ्जनि॑भिः॒ समि॑ध्यते वैश्वान॒रः कु॑शि॒केभि॑र्यु॒गेयु॑गे। स नो॑ अ॒ग्निः सु॒वीर्यं॒ स्वश्व्यं॒ दधा॑तु॒ रत्न॑म॒मृते॑षु॒ जागृ॑विः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvo na krandañ janibhiḥ sam idhyate vaiśvānaraḥ kuśikebhir yuge-yuge | sa no agniḥ suvīryaṁ svaśvyaṁ dadhātu ratnam amṛteṣu jāgṛviḥ ||

पद पाठ

अश्वः॑। न। क्रन्द॑न्। जनि॑ऽभिः। सम्। इ॒ध्य॒ते॒। वै॒श्वा॒न॒रः। कु॒शि॒केभिः॑। यु॒गेऽयु॑गे। सः। नः॒। अ॒ग्निः। सु॒ऽवीर्य॑म्। सु॒ऽअश्व्यम्। दधा॑तु। रत्न॑म्। अ॒मृते॑षु॑। जागृ॑विः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:26» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वैश्वानरः) सम्पूर्ण मनुष्यों का प्रकाशकर्त्ता (जागृविः) जागरणशील (अग्निः) अग्नि (जनिभिः) उत्पन्न करनेवाली घोड़ियों के साथ (क्रन्दन्) शब्द करते हुए (अश्वः) घोड़े के (न) तुल्य (कुशिकेभिः) शब्द करनेवालों से (युगेयुगे) प्रत्येक वर्ष में (सम्) (इध्यते) प्रदीप्त होता है (सः) वह (नः) हम लोगों के लिये (सुवीर्य्यम्) उत्तम बल करनेवाले (स्वश्व्यम्) उत्तम घोड़ों से युक्त (अमृतेषु) सुवर्ण आदि धनों में (रत्नम्) धन को (दधातु) धारण करता है, उसका आप लोग भी संप्रयोग करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य लोग अग्नि को वाहन के चालन आदि कार्यों में संप्रयुक्त करते हैं, तो यह अग्नि किस-किस धन आदि वस्तु की वृद्धि न करे अर्थात् सब वस्तुओं की वृद्धि कर सकता है ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्यो यो वैश्वानरो जागृविरग्निर्जनिभिः सह क्रन्दन्नश्वो न कुशिकेभिर्युगेयुगे समिध्यते स नः सुवीर्यं स्वश्व्यममृतेषु रत्नं दधातु तं यूयमपि संप्रयुङ्ग्ध्वम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वः) तुरङ्गः (न) इव (क्रन्दन्) शब्दायमानः (जनिभिः) जनयित्रीभिर्वडवाभिः (सम्) (इध्यते) प्रदीप्यते (वैश्वानरः) विश्वेषां नराणां प्रकाशकः (कुशिकेभिः) शब्दायमानैः (युगेयुगे) वर्षेवर्षे (सः) (नः) अस्मभ्यम् (अग्निः) पावकः (सुवीर्यम्) शोभनं वीर्य्यं बलं यस्मात् तत् (स्वश्व्यम्) शोभनेष्वश्वेषु साधुम् (दधातु) (रत्नम्) धनम् (अमृतेषु) हिरण्यादिषु धनेषु। अमृत इति हिरण्यनाम०। निघं० १। २। (जागृविः) जागरूकः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यदि मनुष्यैरग्निर्यानचालनादिकार्य्येषु संप्रयुज्यते तर्ह्ययं किं किं धनादिवस्तु नोन्नयेत् ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जी माणसे अग्नीला वाहन चालविण्याच्या क्रियेत संयुक्त करतात तेव्हा तो अग्नी धन इत्यादी वस्तूची वृद्धी का करणार नाही? ॥ ३ ॥